Tuesday, March 10, 2009

A Crisis of Faith

मेरे बाबु जी

याद है कितने वर्ष हो बाबूजी तुम्हे मुझे छोडे हुए ?
मेरा अकेलापन हमेशॉ तुम्हारे साथ गुजरता है.
मैंने घर में हर तरफ़ तुम्हारी तस्वीरे लगा रखी है ताकि
मै तुम्हारे दिए आदर्शो को याद रखु , उन पर सदा चल पाऊ

क्या कुछ पूंछु आज इतने वर्षो के बाद तुमसे ?
क्यो दिए थे यह आदर्श मुझे जीवन में
जहा दुसरो का भला सोचने वाले को
छल रहित जीवन को , सीधी रीड के लोगो को
अयोग्य समझा जाता है ?
जय पराजय के संग्राम में ..
क्षमा को कमजोरी समझा जाता है
ना नही कहना ...,
किसी का दिल नही दुखाना
सच होगा तुम्हारे समय में.....
आज यह आदर्श बोजिल हो गए है


जानते हो, तुमने जिनके लिए अपना सर्वस्व दिया था
वोह तुम्हारी शव यात्रा में भी नही आए
जिन को तुमने अपना माना था...
उन्होंने हमारा उपहास किया तिरस्कार किया
मैंने क्षमाँ किया ...क्यूंकि तुम चाहते थे उन्हें .

बाबूजी ,
आज मै चाह कर भी अपना मार्ग नही बदल सकता
मेरे रक्त में क्यो दिया ऐसा धर्म
क्यो दिया मुझे ऐसा संस्कार
क्या तुम नही चाहते थे ॥
तुम्हारा पुत्र भी इस जीवन में समानित हो ?


सोच रहा हु क्या अपनी संतान को कहूँ वह सब
....जो तुम कहा करता थे मुझसे ?
या छोड़ दू उन्हें ...
इस जीवन संग्राम में अपनी दिशा खोजने के लिए ?

बाबूजी , आज आदर्श और सिधांत प्रासंगिक नही रहे
न ही प्रासंगिक रहे हम तुम

तुम्हारा
रवि





1 comment:

Anshuman's Blog said...

Bahut Accha Ravi Sir - Dil Bhar Aaya..

Anshuman Kantha (Hope you remember me. I worked on Relience Project for very short while from GLP satyam)