अपने जनम दिन की पूर्व संध्या पर...अपने आप से कुछ शब्द॥
रवि
आशा तृष्णा से भरा जीवन मेरा
क्यो भाग रहा, क्यो हार गया
क्यों भागा था मै सब पाने कों ?
जिनको अब छोड़ना है मुश्किल
संगर्ष जितना पाने में था
बड़ा है उस से छोड़ने का
क्या पाया है क्या खोना है
सब मिथ्या है सब धोखा है
जो सहा था वह न दोहराएँगे
सबसे पाया तिरस्कार भी
अपमान भी , सन्मान भी
न झूठ था पहले
न सच है आज
क्यो चाहा है मैंने
जिनको मै भूल गया
क्यो भूल रहा हु
जिनको मै चाहता हु।
हर संकल्प में विकल्प कों क्यो खोजता हु
क्यो इस जीवन की पराजय कों स्वीकार करता हु.
1 comment:
beautiful poem ..
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